जितिया व्रत कथा

जितिया व्रत कथा

यूपी, बिहार और झारखंड में जितिया व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत संतान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है।उदयातिथि के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत इस बार 6 अक्टूबर को ही रखा जाएगा. अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर यानी आज सुबह 6 बजकर 34 मिनट से शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 7 अक्टूबर को सुबह 8 बजकर 8 मिनट पर होगा जितिया व्रत कथा : jitiya vrat katha

Jitiya Vrat katha 2023:

 इस साल जितिया का व्रत 6 अक्टूबर को रखा जाएगा। महापर्व छठ के बाद जितिया को ही सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लिए 24 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं। हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका का व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जितिया व्रत को करने से संतान दीर्घायु होते हैं और उनपर आने वाला हर संकट टल जाता है।  जितिया व्रत को कई जगह जीवित्पुत्रिका और जीउतिया के नाम से भी जाना जाता है। छठ की तरह ही जितिया व्रत का आरंभ भी नहाय-खाय के साथ होता है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर जितिया व्रत की शुरुआत कैसे हुई और क्या है इसकी पौराणिक कथा।

जितिया व्रत की कथा : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान जब द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया, जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की संतान को फिर से जीवित कर दिया। बाद में उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। कहते हैं कि तभी से अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माताएं जितिया का व्रत करने लगी।

जितिया व्रत की चील और सियारिन की कथा : एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थीं। दोनों की आपस में खूब बनती थी। चील और सियारिन एक-दूसरे के लिए खाने का एक हिस्सा जरूर रखती थीं। एक दिन गांव की औरतें जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं। उन्हें देखकर चील का भी मन व्रत करने का कर गया। फिर चील ने सारा वाक्या सियारिन को जाकर सुनाया। तब दोनों ने तय किया कि वो भी जितिया का व्रत रखेंगी। लेकिन अगले दिन जब दोनों ने व्रत रखा तो सियारिन को भूख और प्यास दोनों लगने लगी। सियारिन भूख से व्याकुल इधर-उधर घूमने लगी। व्रत के दिन गांव में किसी की मृत्यु हो गई यह देखकर सियारिन के मुंह में पानी आ गया। फिर सियारिन ने अधजले शव को खाकर अपनी भूख को शांत किया। वह भूल गई उसने जितिया का व्रत रखा है। वहीं चील ने पूरी निष्ठा और मन से जितिया का व्रत और पारण किया।

भगवान जीऊतवाहन की कथा :

चील और सियारिन ने अगले जन्म में सगी बहन बनकर एक राजा के घर में जन्म लिया. चील बड़ी बहन बनी और सियारिन छोटी बहन.  दोनों का विवाह हो गया. चील ने सात संतानों को जन्म दिया, वहीं सियारिन के जो भी बच्चे होते थे वो जन्म लेते ही मर जाते. इस तरह से सियारिन को अपने बहन से ईर्ष्या होने लगी और वह भीतर ही भीतर उससे जलने लगी.

उसने चील के सभी संतानों से मार दिया और सातों बेटों के सिर कटवाकर चील के घर भिजवा दिया. यह देखकर भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों संतानों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उस पर अमृत छिड़कर उन्हें जीवित कर दिया और जो कटे हुए सिर सियारिन ने चील को भिजवाए थे वो सब जीऊतवाहन की कृपा से फल में बदल गए.

जब सियारिन को बहन के रोने की आवाज नहीं सुनाई दी और कोई अशुभ समाचार नहीं मिता तो वह व्याकुल हो गई और सारा माजरा जानने के लिए बहन के पास पहुंच गई. सियारिन ने खुद ही सारी बाते चील को बता दी. तब चील ने उसे पिछले जन्म से जुड़ी सारी बात बताई और यह सब सुनकर सियारिन को अपनी गलती का पश्चाताप हुआ.

इसके बाद चील सियारिन को उसी पेड़ के पास ले गई और भगवान जीऊतवाहन की कृपा से उसे सारी बात याद आ गई. इससे सियारिन इतनी दुखी हुई कि उसकी मौत उसी पेड़ के पास हो गई. सियारिन का अंतिम संस्कार उसी पेड़ के पास करा दिया गया.

भगवान  जीऊतवाहन की कथा (दूसरी कथा) :

एक दूसरी कथा राजा जीमूतवाहन की भी कही जाती है। गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है।

नागवंश की रक्षा करने के लिए नागों ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया।

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